लोगों की राय

कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू

बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !


जहाँ तक याद है यह ईगुल की बात है। उस वर्ष वहाँ गाँधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन था और गाँधीजी भी उसमें पधारे थे। वहाँ उन्होंने जो भाषण दिया, उसका आरम्भ उन्होंने कुछ इस तरह किया-

अभी मैं अपने ठहरने के स्थान से जब यहाँ चला आ रहा था तो मैंने देखा कि एक अध्यापक महोदय कुछ बालकों को तकली चलाना सिखा रहे थे, पर उनका तकली चलाने का तरीक़ा स्वयं ही शुद्ध नहीं था। भूल यह थी कि वे पहले पूरा धागा खींच लेते थे और तब उसे ऐंठते थे। यह बड़ी भारी भूल है।

एक साधक ने पूछा, पूरा धागा खींचकर फिर उसे ऐंठने में क्या भूल है बापू?

जवाब मिला, पूरा धागा खींचने पर किसी काम से बिना उसे ऐंठ दिये कातनेवाले को उठना पड़ जाए तो उस कच्चे सूत के ख़राब होने का तो भय है ही, पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि आपका एक काम अधूरा रह गया।

और बस अपने स्वभाव के अनुसार यहीं गाँधीजी तकली के सूत्र से जीवन के सूत्र में उतर आये और बोले, पता नहीं मनुष्य के पास मृत्यु कब आ पहुँचे, इसलिए उसे इस तरह जीना चाहिए कि जब भी वह संसार से जाए, उसका हरेक काम अपनी जगह पूरा हो और किसी दूसरे को उसका काम पूरा करने में नहीं, उसके काम को आगे बढ़ाने में ही हाथ लगाना पड़े।

ईगुल की यह बातचीत जब-जब मेरे ध्यान में आयी है, मैंने सोचा है-गाँधीजी जीवन की हर बात को कितनी गहराई से सोचते थे और जीवन के हर क्षण को कितनी गम्भीरता से लेते थे।

और जब भी कभी मैं यह सोचता हूँ कि वे जिस दिन स्वयं इस संसार से गये, अपना वह दिन उन्होंने तीन बजकर सत्ताईस मिनिट पर आरम्भ किया था और जवाब के लिए बीच में पड़ी चिट्ठियों का जवाब उन्होंने लिखाया था, तो एक तड़फन मेरे प्राणों में कौंध-कौंध उठती है कि क्या वे जानते थे कि मैं आज जा रहा हूँ और इसीलिए उन्होंने अपने कई अधूरे काम उस दिन पूरे कर दिये थे !!

तो जीवन का यह सूत्र बना कि जो काम करो, पूरा करो-एक को बीच में अधूरा छोड़, दूसरे का आरम्भ और दूसरे को अधूरा छोड़, तीसरे का आरम्भ, यह काम करने का कोई अच्छा तरीक़ा नहीं है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book